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वक्फ संशोधन विधेयक 2024 का मामले में दरगाही और देवबंदी दो भागों में विभाजित

ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल और ऑल इंडिया उलेमा मशाइख बोर्ड के उपाध्यक्ष शाह अम्मार अहमद अहमदी उर्फ नय्यर मियां ने कहा है कि देवबंदी और वहाबी आंदोलनों द्वारा दरगाह बोर्ड का विरोध एक सुविचारित साजिश है।

नई दिल्ली, 24 सितंबर 2024: वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के मामले में अब इस्लामिक मिल्लत दरगाह और देवबंदी के रूप में दो हिस्सों में बंटती हुई नजर आ रही है। ऑल इंडिया उलेमा मशाइख बोर्ड व ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के उपाध्यक्ष शाह अम्मार अहमद अहमदी उर्फ नय्यर मियां ने घटना की निंदा की है। उन्होने प्रेस को जारी अपने बयान में उन्होंने पूरे मामले को दरगाह बोर्ड का विरोध करने के लिए देवबंदी और वहाबी आंदोलनों द्वारा एक सुनियोजित साजिश बताया है। उन्होंने विपक्ष की कड़ी निंदा करते हुए इसे मठों के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक चरित्र को कमजोर करने के प्रयास का हिस्सा बताया। असहमति के अधिकार और इसकी सीमाओं पर शाह अम्मार अहमदी ने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी शिक्षाओं में असहमति के लिए जगह है और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है, बशर्ते वह नैतिक और इस्लामी सीमाओं के भीतर रहे। हालांकि, किसी व्यक्ति या संस्था को केवल असहमति के आधार पर देशद्रोही कहना इस्लामी मूल्यों और सामाजिक सद्भाव के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा, “मतभेदों को व्यक्तिगत दुश्मनी और आधारहीन आरोपों में बदलना अनैतिक है, इससे समाज में अशांति पैदा होती है। पत्रकारिता नैतिकता और निष्पक्षता शाह अम्मार अहमदी ने मीडिया की भूमिका पर अफसोस जताया, जहां कुछ पत्रकारिता संस्थान गैर-जिम्मेदाराना रूप से ऐसी खबरें प्रकाशित करते हैं जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे सकती हैं। उनके अनुसार, पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य सच्चाई और निष्पक्षता पर आधारित होना चाहिए, लेकिन कुछ मीडिया आउटलेट धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दे रहे हैं, जो सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के लिए बहुत खतरनाक है। वक्फ बोर्ड की आलोचना करते हुए शाह अम्मार अहमदी ने कहा कि वक्फ बोर्ड ने लगातार मठों के अधिकारों का उल्लंघन किया है और उनके वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करके मठों की व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि ये नीतियां वास्तव में देवबंदी और वहाबी आंदोलनों के एजेंडे को बढ़ावा देती हैं, जो मठों की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थिति को नष्ट करने की साजिश का हिस्सा हैं। दरगाह बोर्ड की स्थापना का समर्थन करते हुए शाह अम्मार अहमदी ने कहा कि मठों के अधिकारों और स्वायत्तता की रक्षा के लिए यह कदम बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने मांग को देशद्रोही करार देने वालों की निंदा की और कहा कि दरगाह बोर्ड की स्थापना मठों के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में सुधार के साथ-साथ उनके अधिकारों की रक्षा करने की गारंटी होगी। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दरगाह बोर्ड की स्थापना सज्जागनों और सभी मठों के प्रतिनिधियों की सर्वसम्मत मांग है और यह उनका अधिकार है। असली गद्दार कौन है? अपने भाषण में शाह अम्मार अहमदी ने उन लोगों का आह्वान किया जो अतीत में मठों के अधिकारों के उल्लंघन पर चुप रहे और मठों की व्यवस्था की रक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों की अनावश्यक रूप से आलोचना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जो हमेशा मठों की व्यवस्था को कमजोर करना चाहते थे और अभी भी इस व्यवस्था को मजबूत करने के खिलाफ हैं। वक्फ संशोधन अधिनियम पर स्पष्टीकरण वक्फ संशोधन अधिनियम के संदर्भ में बोलते हुए शाह अम्मार अहमदी ने इस धारणा को गलत बताया कि ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल ने इस कानून का पूरी तरह से समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि समर्थन केवल कुछ शर्तों और शर्तों के तहत दिया गया है, और इन शर्तों के अभाव में, उनका रुख समर्थन के बजाय विरोध का होगा। पूर्ण समर्थन के दावे झूठ और आरोप हैं, जिन्हें वे और सभी मठवादी संगठन नकारते हैं। शाह अम्मार अहमद अहमदी ने अपने बयान के अंत में अहल-ए-सुन्नत वल-जमात के सदस्यों को देवबंदी और वहाबी आंदोलनों की साजिशों से सावधान रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि दरगाह बोर्ड की स्थापना समय की आवश्यकता है, और यह न केवल मठों की व्यवस्था की स्वायत्तता और आध्यात्मिक स्थिति को बनाए रखेगा। बल्कि, यह मुस्लिम उम्माह की एकता और स्थिरता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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